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मान्‍यता नहीं… फिर भी भारत आ रहा तालिबान ‘राजदूत’ इकरामुद्दीन, आम नागरिक की हैसियत से करेगा काम

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अफगानिस्‍तान की नई तालिबान सरकार के साथ कूटनीतिक रिश्‍तों के लिहाज से भारतीय विदेश मामलों के चाणक्‍य एस जयशंकर की नीति असरदार साबित होती दिख रही है. एक सप्‍ताह पहले ही भारतीय विदेश मंत्रालय के एक दल ने काबूल में अफगानिस्‍तान की अंतरिम सरकार के डिफेंस मिनिस्‍टर से मुलाकात की थी. जिसके बाद अब तालिबान सरकार ने अपना एक नुमाइंदा भारत में अफगानिस्‍तान के प्रतिनिधि के रूप में काम करने के लिए भेज दिया है. तालिबान शासन ने मुंबई में अफगान मिशन में इकरामुद्दीन कामिल को “कार्यवाहक वाणिज्यदूत” नियुक्त किया है. हालांकि ये स्‍पष्‍ट कर दें कि भारत ने अभी तक तालिबान की सरकार को औपचारिक मान्‍यता नहीं दी है.

भारत ने अभी तक इस मुद्दे पर आधिकारिक रूप से कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दी है. मामले की जानकारी रखने वालों ने बताया कि विदेश मंत्रालय (एमईए) की स्‍कॉलरशिप पर भारत में सात साल तक अध्ययन करने वाले कामिल ने वाणिज्य दूतावास में “राजनयिक” के रूप में काम करने पर सहमति जताई है. हालांकि उनका स्‍टेटस फिलहाल भारत में अफगानों के लिए काम करने वाले एक अफगान नागरिक का ही है. अफगान मीडिया ने सोमवार को बताया था कि इकरामुद्दीन कामिल भारत में किसी भी अफगान मिशन में तालिबान शासन द्वारा की गई पहली ऐसी नियुक्ति है. तालिबान के राजनीतिक मामलों के उप विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई ने भी एक्स पर पोस्ट करके कामिल की “कार्यवाहक वाणिज्यदूत” के रूप में नियुक्ति की पुष्टि की.

बैक-चैनल से तालिबान से बात
तालिबान सरकार आने के बाद भारत कई बार बैक-चैनल से उनसे बात कर चुका है. इस साल अबतक दो बार भारत और तालिबान के बीच औपचारिक बातचीत हो चुकी है. चंद दिनों पहले ही भारतीय विदेश मंत्रालय के अफसरों ने अफगानिस्‍तान का दौरा किया था. जिसके बाद अब तालिबान सरकार ने भारत में लंबे वक्‍त तक काम कर चुके इकरामुद्दीन कामिल को यहां मौजूद हजारों अफगान नागरिकों की मदद करने के लिए बिना किसी डिप्‍लोमेटिक पावर के भेजा है. 2021 में तालिबान के कब्जे के मद्देनजर भारत ने काबुल में मिशन से अपने राजनयिकों को वापस बुला लिया था. दिल्ली में अफगान दूतावास में काम करने वाले राजनयिकों ने भी भारत छोड़ दिया और विभिन्न पश्चिमी देशों में शरण मांगी थी.

विदेश मंत्रालय में कामिल की अच्‍छी पकड़
भले ही सरकार के स्‍तर पर भारत और तालिबान के बीच ज्‍यादा नजदीकियां नहीं रही हों लेकिन दोनों देश के नागरिकों के बीच संबंध बेहद गहरे हैं. अफगान मूल के लोगों की भारत में बड़ी आबादी है. भारतीय सूत्रों ने कहा, “भारत में अफगान नागरिकों को प्रभावी ढंग से सेवा प्रदान करने के लिए अधिक कर्मचारियों की जरूरत है.” कामिल की अनौपचारिक नियुक्ति पर कहा गया कि वह एक युवा अफगान छात्र है, जिससे भारतीय विदेश मंत्रालय अच्‍छे से परिचित है. उसने विदेश मंत्रालय की स्‍कॉलरशिप पर साउथ एशिया यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी करते हुए सात साल तक भारत में रिसर्च की है.