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भारत में खूब पैसा कूटते हैं फेसबुक, X और गूगल; ट्रेडिशनल मीडिया को नहीं देते धेला, समझें क्यों है कानून की जरूरत

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नेशनल प्रेस डे के मौके पर केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ट्रेडिशनल मीडिया यानी कंवेंशनल कॉन्टेंट पब्लिशर्स के लिए उचित मुआवजे जैसे अहम मुद्दे पर बड़ी बात कही. उन्होंने कहा कि आज कॉन्टेंट और न्यूज़ कंजम्प्शन तेजी से कंवेंशनल मीडिया से डिजिटल मीडिया यानी फेसबुक-एक्स जैसे सोशल मीडिया पर शिफ्ट हो गया है. इस तरह के बदलाव की वजह से ट्रेडिशनल मीडिया को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि कंवेंशनल कॉन्टेंट पब्लिशर्स को कॉन्टेंट प्रोड्यूस करने में अच्छा-खासा समय और पैसे दोनों खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन बार्गेनिंग पावर के मामले में डिजिटल मीडिया को कंवेंशनल की तुलना में बड़ी बढ़त हासिल है.

केंद्रीय मंत्री के इस बयान के बाद ये चर्चा तेज हो गई है कि क्या भारत में भी ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की तरह ही कानून बन सकता है? ऑस्ट्रेलिया ने करीब 4 वर्ष पहले 2021 में ही समाचार मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म मैंडेटरी बारगेनिंग कोड बना दिया था. जिससे मीडिया कंपनियों के लिए तकनीकी प्लेटफॉर्म्स के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर बातचीत करना आसान हो गया है. इस कानून के तहत इंटरनेट दिग्गजों को अपने प्लेटफॉर्म पर पब्लिश करने वाले कॉन्टेंट के लिए न्यूज़ पब्लिशर्स को अच्छी-खासी रकम मुआवजे के तौर पर चुकानी पड़ती है.

सवाल है कि आखिर ऐसे कानून की जरूरत क्यों है? इसके लिए हमें कुछ दूसरे तथ्यों पर भी नज़र डालना होगा. भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ऑनलाइन मार्केट है. फेसबुक, एक्स और गूगल जैसी दुनिया की सबसे बड़ी टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया कंपनियां एक बड़ी रकम भारत से कमाती हैं, जिसका कोई भी हिस्सा वो भारतीय कॉन्टेंट प्रोवाइडर्स को नहीं चुकाती हैं.

गूगल और फेसबुक से मिलता है 80% एक्सटर्नल ट्रैफिक
न्यूज़ कॉन्टेंट के इंटरनेट ट्रैफिक पर फिलहाल चुनिंदा कंपनियों का ही दबदबा है. जानकारों के मुताबिक न्यूज़ वेबसाइट को 80% से ज्यादा एक्सटर्नल ट्रैफिक गूगल और फेसबुक से मिलते हैं. इन दोनों कंपनियों को मिल रहे ट्रैफिक के लिए न्यूज़ कॉन्टेंट एक बड़ा सोर्स है. गूगल पर करीब 40% ट्रेंडिंग क्वेरीज न्यूज़ कॉन्टेंट से जुड़े होते हैं.

डिजिटल न्यूज़ की कमाई सिर्फ गूगल और फेसबुक के खाते में
इंटरनेट ट्रैफिक पर अपने आधिपत्य के दम पर न्यूज़ के डिजिटल इस्तेमाल से होने वाली 70-80% विज्ञापन की कमाई सिर्फ गूगल और फेसबुक जैसी बड़ी कंपनियों के खाते में चली जाती है. न्यूज़ का डिजिटल इस्तेमाल बढ़ने से दूसरे सोर्स से पब्लिशर्स की कमाई दिन-ब-दिन घटती जा रही है. लेकिन ट्रेडिशनल मीडिया के लिए क्रेडिबल कॉन्टेंट प्रोडक्शन का उनका खर्च घटने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में गूगल और फेसबुक की वजह से ऐसे पब्लिशर्स को भारी-भरकम नुकसान उठाना पड़ रहा है.

कमाई साझा होगी तो न्यूज़ इंडस्ट्री में लाखों नौकरियां भी बचेंगी
अगर कॉन्टेंट साझा करने वाली बड़ी कंपनियां अपनी कमाई कॉन्टेंट पब्लिशर्स के साथ साझा करती हैं तो ट्रेडिशनल पब्लिशर्स का आर्थिक घाटा कम होगा या हो सकता है कि उन्हें मुनाफा भी हो, ऐसे में न्यूज़ इंडस्ट्री को आर्थिक मदद मिलेगी और हजारों-लाखों नौकरियां खत्म होने से बच पाएंगी.

टैक्स से कमाएगी सरकार
गूगल और फेसबुक न्यूज़ कंटेंट से होने वाली कमाई पब्लिशर्स के साथ साझा करती हैं, तो सरकार को भी टैक्स से ठीक-ठाक कमाई हो सकती है, क्योंकि सरकार के लिए घरेलू कॉन्टेंट पब्लिशर कंपनियों से टैक्स लेना बहुराष्ट्रीय कंपनियों से टैक्स लेने के मुकाबले ज्यादा आसान है. इसी फॉर्मूले के तहत ऑस्ट्रेलिया ने ग्लोबल टेक कंपनियों को न्यूज कॉन्टेंट से होने वाली कमाई में से हिस्सा साझा करने के लिए कानून बनाए हैं.