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अमित शाह त्रिपुरा दौरा: ब्रू रियांग इलाकों के दौरे से मिलेगी इस समुदाय के विकास को बहुत बड़ी सौगात

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अगरतला. गृहमंत्री अमित शाह रविवार को त्रिपुरा के ढलाई इलाके में ब्रू रियांग समुदाय के पुनर्वास बसावटों का दौरा करेंगे. जनवरी 2020 में चार पक्षों के बीच ब्रू रियांग समझौता हुआ था जिसमें भारत सरकार, त्रिपुरा सरकार, मिजोरम सरकार और ब्रू, रियांग जनजाति के प्रतिनिधि शामिल थे. इस समझौते के तहत मिजोरम से विस्थापित 37000 लोगों को त्रिपुरा में बसाने की योजना तैयार की गई थी.

इस समझौते के 4 साल बाद त्रिपुरा में रह रहे ब्रू रियांग विस्थापितों के विकास का हाल जानने के लिए इस विस्थापित इलाके का दौरा करेंगे. वह कई पुनर्वास योजनाओं का शिलान्यास भी करेंगे. दरअसल जनजातीय हिंसा की वजह से कई साल पहले इस समुदाय के लोग विस्थापित हुए थे और भारत सरकार के अहम समझौते के तहत उन्हें त्रिपुरा में रहने का मौका मिला था. करीब 37000 ऐसे लोगों की जिंदगी का हाल जानने के लिए गृह मंत्री अमित शाह के लिए यह दौरा होगा. 4 साल की विकास यात्रा कैसी रही और आने वाले दिन में क्या परियोजनाएं और होंगी, गृह मंत्री इन सारी चीजों का खाका का तैयार करेंगे.

इतनी बड़ी संख्या में विस्थापन और पुर्नवास का बड़ा उदाहरण…

मिजोरम त्रिपुरा सीमा ढलाई इलाका वह जगह है जहां अपना घर छोड़ चुके एक प्रदेश के 37000 लोगों को दूसरे प्रदेश की जमीन में बसाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी. समूचे भारत में 37000 लोगों की विस्थापित जिंदगी और उनके पुनर्वास कॉलोनी का शायद ही ऐसा कहीं दूसरा उदाहरण हो… गृह मंत्री अमित शाह की पहल पर इस पूरी परियोजना का ब्लूप्रिंट तैयार किया गया जिसके 4 साल बाद इन लोगों की जिंदगी में क्या सुधार आया है, हम आपको इस ग्राउंड रिपोर्ट के जरिए बताएंगे.

इस इलाके में कुछ साल पहले सिर्फ जानवर ही रहा करते थे लेकिन अब इन दुर्गम इलाकों में इंसानों को बसाने की कवायद शुरु कवायद शुरू हो चुकी है. यहां रहते हैं ब्रू रियांग समुदाय के 37000 लोग जोकि 23 साल पहले मिजोरम अपना घर बार छोड़कर भागकर यहां आए थे. इस इलाके में 5900 ब्रू रियांग समुदाय के परिवार इसी तरीके से पिछले 23 साल से अपनी जिंदगी गुजार रहे. ऐसे लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि वह अपने गृह राज्य मिजोरम में मौजूदा हालात की वजह से न तो वापस जाना चाहते थे और ना ही वहां पर बसना चाहते थे. इसीलिए पिछले 23 साल से इसी तरीके से 37000 लोगों का यह छोटा सा शहर एक एक चीज की जरूरत को पूरा करने के लिए संघर्ष करते हुए बंजारों की तरह अपनी जिंदगी काट रहा था. 2010 से इन समुदाय के लोगों को त्रिपुरा में बचाने के लिए प्रयास शुरू किए गए लेकिन वह सफल नहीं हो पाए.

एक बार फिर 2018 में यह प्रयास शुरू हुआ और 16 जनवरी 2020 को भारत सरकार का एक ऐतिहासिक समझौता हुआ जिसके तहत त्रिपुरा राज्य में इन लोगों को स्थाई रूप से बस आने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई. इस समझौते के बाद अब इस समुदाय के लोगों को उम्मीद है कि उनका भविष्य बेहतर होगा और जो तकलीफ में उन्होंने झेली हैं उनके बच्चों को नहीं झेलनी पड़ेगी. ब्रू रियांग समुदाय और सरकारी नुमाइंदों के बीच हुए इस समझौते को चरणबद्ध तरीके से पूरा किया जाएगा और यह सारी बातें मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग में लिखी गई है. केन्द्र सरकार ने 700 करोड़ रुपए से ज्यादा का बजट भी बनाया है. न्यूज18 इंडिया देश के उन चुनिंदा न्यूज चैनलों में से एक है जो इस कैंप में पहुंचा.

सरकार ने जो योजनाएं ब्रू रियांग समुदाय के लोग रह रहे हैं त्रिपुरा में तैयार की हैं और वादे के मुताबिक-

-40 फीट लंबा और 30 फीट चौड़ा आवासीय प्लॉट दिया जाएगा
-400000 का फिक्स डिपाजिट, 2 साल तक हर महीने ₹5000 और तय मात्रा में मुफ्त राशन
– अपना घर बनाने के लिए डेढ़ लाख रुपए इनको दिया जाएगा
– इसके अलावा राज्य सरकार की और केंद्र सरकार की सारी कल्याणकारी योजनाएं तय कार्यक्रम के मुताबिक ही कैंपों में इन शरणार्थियों के लिए चलाई जाएंगी

इस समझौते के बाद भी कई चुनौतियां हैं जिन्हें पूरा किया जाना बाकी है. ब्रू रियांग शरणार्थी त्रिपुरा में जिस कंचनपुर सबडिवीजन के इलाके में बसे हैं वहां की आबादी करीब एक लाख है और अब इन 37000 लोगों को स्थायी नागरिकता देने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. ऐसे में स्कूल, अस्पताल, बिजली सार्वजनिक परिवहन और नौकरी के साधन मुहैया करवाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है जिसकी वजह है इस सबडिवीजन का मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर जो यहां की आबादी के हिसाब से चैलेंजिंग है.