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‘हम यहां किसी के लिए बंदूक चलाने नहीं आए हैं’, सुप्रीम कोर्ट बोला- पता होना चाहिए कैसे गुमराह किया जा सकता है

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पतंजलि आयुर्वेद मामले में सुनवाई का दायरा बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एफएमसीजी (FMCG) कंपनियों के भ्रामक विज्ञापनों पर कड़ा रुख अपनाया और तीन केंद्रीय मंत्रालयों से जनता के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले इस तरह के चलन को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी मांगी. साथ ही मामले की सुनवाई कर रही दो जजों की पीठ ने कहा कि वे यहां किसी विशेष पार्टी या किसी विशेष एजेंसी या किसी विशेष प्राधिकारी के लिए बंदूक चलाने के लिए नहीं आए हैं.

बाबा रामदेव और उनके सहयोगी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के बालकृष्ण ने जस्टिस हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ को बताया कि उन्होंने भ्रामक विज्ञापनों पर 67 समाचार पत्रों में बिना शर्त सार्वजनिक माफी मांगी है और वे अपनी गलतियों के लिए बिना शर्त माफी मांगते हुए अतिरिक्त विज्ञापन भी जारी करना चाहते हैं. पीठ ने कहा कि अखबारों में प्रकाशित सार्वजनिक माफी रिकॉर्ड पर नहीं है. इसे दो दिन के भीतर दाखिल की जाए. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 30 अप्रैल की तारीख निर्धारित की है.

‘FMCG कंपनियां जनता को दे रही धोखा’
पतंजलि मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि औषधि एवं जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, औषधि एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम तथा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों के कार्यान्वयन और संबंधित नियमों की भी बारीकी से पड़ताल की जरूरत है. पीठ ने कहा कि यह मुद्दा केवल पतंजलि तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दैनिक उपभोग के सामान बनाने वाली (एफएमसीजी) सभी कंपनियों तक फैला हुआ है, जो ‘भ्रामक विज्ञापन जारी कर रही हैं और जनता को धोखा दे रही हैं. खासकर शिशुओं, स्कूल जाने वाले बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही हैं, जो उक्त गलत बयानी के आधार पर उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं.

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