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वेंकैया नायडू की जीत ने साउथ में कैसे खोला BJP का रास्ता….बर्थडे पर PM मोदी ने याद कर बताई वो कहानी

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भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का आज बर्थडे है. भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता वेंकैया नायडू आज 74 साल के हो गए. वेंकैया नायडू के बारे में कहा जाता है कि उनकी जीत ने ही साउथ में भाजपा का रास्ता प्रशस्त किया. वेंकैया नायडू के जन्मदिन पर पीएम नरेंद्र मोदी ने एक लेख के जरिए उन्हें जन्मदिन की बधाई दी है. पीएम मोदी ने वेंकैया नायडू को राजनीति में शुचिता का प्रतीक कहा है. उन्होंने कहा कि वेंकैया नायडू एक विशाल व्यक्तित्व की व्यापक उपलब्धियों को समेटे हुए हैं. उनका जीवन सेवा, समर्पण और संवेदनशीलता की ऐसी यात्रा है, जिसके बारे में सभी देशवासियों को जानना चाहिए. तो चलिए पढ़ते हैं वेंकैया नायडू के जन्मदिन पर पीएम मोदी का पूरा आलेख.

‘आज भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति और राष्ट्रीय राजनीति में शुचिता के प्रतीक हमारे एम. वेंकैया नायडू गारू का जन्मदिवस है. वेंकैया नायडू जी आज 75 वर्ष के हो गए हैं. उन्होंने राष्ट्रसेवा और जनसेवा को हमेशा सर्वोपरि रखा है. मैं उनके दीर्घायु होने और स्वस्थ जीवन की कामना करता हूं. देश में उनके लाखों चाहते वाले हैं. मैं उनके सभी शुभचिंतकों और समर्थकों को भी बधाई देता हूं.

वेंकैया जी का 75वां जन्मदिवस एक विशाल व्यक्तित्व की व्यापक उपलब्धियों को समेटे हुये है. उनका जीवन सेवा, समर्पण और संवेदनशीलता की ऐसी यात्रा है, जिसके बारे में सभी देशवासियों को जानना चाहिए. राजनीति में अपने प्रारम्भिक दिनों से लेकर उपराष्ट्रपति जैसे शीर्ष पद तक, नायडू गारू ने भारतीय राजनीति की जटिलताओं को जितनी सरलता और विनम्रता से पार किया, वो अपने आपमें एक उदाहरण है. उनकी वाकपटुता, हाजिरजवाबी और विकास से जुड़े मुद्दों के प्रति उनकी सक्रियता के कारण उन्हें दलगत राजनीति से ऊपर हर पार्टी में सम्मान मिला है.

वेंकैया गारू और मैं दशकों से एक-दूसरे से जुड़े रहे हैं. हमने लंबे समय तक अलग-अलग दायित्वों को संभालते हुए साथ काम किया है, और मैंने हर भूमिका में उनसे बहुत कुछ सीखा है. मैंने देखा है कि जीवन के हर पड़ाव पर आम लोगों के प्रति उनका स्नेह और प्रेम कभी नहीं बदला. वेंकैया जी सक्रिय राजनीति से आंध्र प्रदेश में छात्र नेता के रूप में जुड़े थे. उन्होंने राजनीति के पहले पड़ाव पर ही प्रतिभा, वक्तृत्व क्षमता और संगठन कौशल की अलग छाप छोड़ी थी. किसी भी राजनीतिक दल में उन्हें कम समय में बड़ा स्थान मिल सकता था. लेकिन उन्होंने संघ परिवार के साथ काम करना पसंद किया, क्योंकि उनकी आस्था राष्ट्र प्रथम के विजन में थी. उन्होंने विचार को व्यक्तिगत हितों से ऊपर रखा और बाद में जनसंघ एवं बीजेपी को मजबूत किया.

लगभग 50 साल पहले जब कांग्रेस पार्टी ने देश में आपातकाल लगाया था, तब युवा वेंकैया गारू ने आपातकाल विरोधी आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया. उन्हें लोकनायक जेपी को आंध्र प्रदेश में आमंत्रित करने के लिए जेल जाना पड़ा. लोकतंत्र के लिए उनकी ये प्रतिबद्धता, उनके राजनीतिक जीवन में हर जगह दिखाई देती है. 1980 के दशक के मध्य में, जब महान एनटीआर की सरकार को कांग्रेस ने गलत तरीके से बर्खास्त कर दिया था, तब वे फिर से लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा के लिए हुए आंदोलन की अग्रिम पंक्ति में थे.

1978 में आंध्र प्रदेश ने जब कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया था, तब वेंकैया जी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद एक युवा विधायक के रूप में जीतकर आए थे. पांच साल बाद, राज्य चुनाव में एनटीआर की लोकप्रियता अपने सर्वोच्च स्तर पर थी. तब भी वे बीजेपी के विधायक चुने गए. उनकी जीत ने आंध्र समेत दक्षिण में बीजेपी के लिए भविष्य के बीज बोये थे. युवा विधायक के रूप में ही, वे विधायी मामलों में अपनी दृढ़ता और अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों की आवाज उठाने के लिए सम्मानित होने लगे.

उनकी वाकपटुता, शब्दशैली और संगठन सामर्थ्य से प्रभावित होकर एनटीआर जैसे दिग्गज ने उनकी प्रतिभा को पहचाना. एनटीआर उन्हें अपनी पार्टी में शामिल करना चाहते थे, लेकिन वेंकैया गारू हमेशा की तरह अपनी मूल विचारधारा पर अडिग रहे. उन्होंने आंध्र प्रदेश में बीजेपी को मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभाई, गांवों में जाकर सभी क्षेत्रों के लोगों से जुड़े. उन्होंने विधानसभा में पार्टी का नेतृत्व किया और आंध्र प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष भी बने.

1990 के दशक में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने वेंकैया गारू के परिश्रम और प्रयासों को पहचानते हुये उन्हें पार्टी का अखिल भारतीय महासचिव नियुक्त किया. 1993 में यहीं से राष्ट्रीय राजनीति में उनका कार्यकाल शुरू हुआ था. एक ऐसा व्यक्ति, जो किशोरावस्था में अटल जी और आडवाणी जी के दौरों की तैयारी करता था, उनके लिए ये कितना बड़ा मुकाम था. पार्टी महासचिव के रूप में, उनका एक ही लक्ष्य था कि अपनी पार्टी को सत्ता में कैसे लाया जाए! उनका एक ही संकल्प था कि कैसे देश को बीजेपी का पहला प्रधानमंत्री मिले. दिल्ली आने के बाद, उनकी मेहनत का ही परिणाम था कि उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. कुछ ही समय बाद वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने.

वर्ष 2000 में, जब अटल जी सरकार बना रहे थे तो वो वेंकैया गारू को अपनी सरकार में मंत्री बनाना चाहते थे. अटल जी ने उनसे उनकी इच्छा पूछी तो वेंकैया गारू ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को अपनी प्राथमिकता के रूप में चुना. उनकी इस पसंद ने तब कई लोगों को हैरान किया था. क्योंकि, उसके पहले नेताओं के लिए दूसरे मंत्रालय पहली पसंद हुआ करते थे. लेकिन, वेंकैया गारू की सोच बिल्कुल स्पष्ट थी- वह एक किसान पुत्र थे, उन्होंने अपने शुरुआती दिन गांवों में बिताए थे और इसलिए, अगर कोई एक ऐसा क्षेत्र था जिसमें वह काम करना चाहते थे, तो वह ग्रामीण विकास था. उस समय एक मंत्री के रूप में ‘प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना’ को जमीन पर उतारने में उनकी अहम भूमिका थी.

2014 में एनडीए सरकार ने सत्ता संभाली, तो उन्होंने शहरी विकास, आवासन एवं शहरी गरीबी उन्मूलन जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों को संभाला. उनके कार्यकाल के दौरान ही हमने ‘स्वच्छ भारत मिशन’ और शहरी विकास से संबंधित कई महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू कीं. शायद, वह उन नेताओं में से एक हैं जिन्होंने इतने लंबे समय तक ग्रामीण और शहरी विकास दोनों के लिए काम किया है.

2014 के उन शुरुआती दिनों में वेंकैया जी का अनुभव मेरे भी बहुत काम आया था. मैं उस समय दिल्ली के लिए एक बाहरी व्यक्ति था. मेरा करीब डेढ़ दशक गुजरात में ही काम करते हुये बीता था. ऐसे समय में वेंकैया गारू का सहयोग मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण था. वह एक प्रभावी संसदीय कार्य मंत्री थे. वो सदन में पक्ष-विपक्ष की बारीकियों को समझते थे. साथ ही, जब संसदीय मानदंडों और नियमों की बात आती थी, तब वो नियमों को लेकर भी उतना ही स्पष्ट नजर आते थे.

वर्ष 2017 में, हमारे गठबंधन ने उन्हें हमारे उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में नामित किया. ये हमारे लिए एक कठिन और दुविधा से भरा निर्णय था. हम ये जानते थे कि वेंकैया गारू के स्थान को भरना बेहद कठिन होगा. लेकिन साथ ही, हमें ये भी पता था कि उपराष्ट्रपति पद के लिए उनसे बेहतर कोई और उम्मीदवार नहीं है. मंत्री और सांसद पद से इस्तीफा देते हुए उन्होंने जो भाषण दिया था, उसे मैं कभी नहीं भूल सकता. जब उन्होंने पार्टी के साथ अपने जुड़ाव और इसे बनाने के प्रयासों को याद किया तो वह अपने आंसू नहीं रोक पाए. इससे उनकी गहरी प्रतिबद्धता और जुनून की झलक मिलती है. उपराष्ट्रपति बनने पर उन्होंने कई ऐसे कदम उठाए, जिससे इस पद की गरिमा और भी बढ़ी. वह राज्यसभा के एक उत्कृष्ट सभापति थे, जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि युवा सांसदों, महिला सांसदों और पहली बार चुने गए सांसदों को बोलने का अवसर मिले. उन्होंने सदन में उपस्थिति पर बहुत जोर दिया, समितियों को अधिक प्रभावी बनाया. उन्होंने सदन में बहस के स्तर को भी ऊंचा उठाया.

जब अनुच्छेद 370 और 35 (ए) को हटाने का निर्णय राज्यसभा के पटल पर रखा गया, तो वेंकैया गारू ही सभापति थे. मुझे यकीन है कि यह उनके लिए एक भावनात्मक क्षण था. वह युवा जिसने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के एक विधान, एक निशान, एक प्रधान के संकल्प के लिए अपना जीवन समर्पित किया था, जब वह सपना पूरा हुआ तो वह सभापति के पद पर आसीन था. किसी निष्ठावान देशभक्त के जीवन में इससे बड़ा समय और क्या होगा!

काम और राजनीति के अलावा, वेंकैया गारू एक उत्साही पाठक और लेखक भी हैं. दिल्ली के लोगों के बीच, उन्हें उस व्यक्ति के रूप में जाना जाता है जो शहर में गौरवशाली तेलुगु संस्कृति लेकर आए. उनके द्वारा आयोजित उगादी और संक्रांति कार्यक्रम स्पष्ट रूप से शहर के सबसे पसंदीदा समारोहों में से एक हैं. मैं वेंकैया गारू को हमेशा एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जानता हूं जो भोजन प्रेमी हैं और शानदार मेजबानी करना जानते हैं. लेकिन, पिछले कुछ समय से उनका संयम भी सबके सामने दिखने लगा है. फिटनेस के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इस बात से झलकती है कि वह अभी भी बैडमिंटन खेलना और ब्रिस्क वॉक करना पसंद करते हैं.

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