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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के पहले चीफ जस्टिस शिशाक नहीं रहे:नागा जनजाति से देश के पहले जज ने कहा था- जो कहो वही करो

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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के पहले चीफ जस्टिस डब्ल्यू ए शिशाक का शुक्रवार को 82 साल की आयु में निधन हो गया। उनका इलाज इंफाल में चल रहा था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। जब हाईकोर्ट में उन्हें चीफ जस्टिस बनाया गया, तब समारोह में उन्होंने कहा था कि जो कहो, वही करो, अगर हम अपने कहने के सिवाय दूसरा कुछ करते हैं, तब कोई हम पर भरोसा नहीं करेगा और लोगों का भरोसा टूट जाएगा। उनका कहना था कि अगर कोई मेरी विद्वता पर सवाल उठाए तो स्वीकार है। लेकिन, मैं पक्षपात का आरोप नहीं झेल सकता। बता दें वे देश के नागा जनजाति वर्ग के पहले जज और चीफ जस्टिस थे।

उनके निधन की खबर मिलने पर शुक्रवार को हाईकोर्ट परिसर में शोकसभा हुई। इसमें चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा सहित सभी जस्टिस, अतिरिक्त महाधिवक्ता राघवेन्द्र प्रधान, छग राज्य विधिक परिषद के प्रतिनिधि प्रफुल्ल एन. भारत, डिप्टी सॉलिसिटर जनरल रमाकांत मिश्रा, हाईकोर्ट अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष अब्दुल वहाब खान सहित और अन्य अधिवक्ताओं ने पूर्व चीफ जस्टिस शिशाक को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दौरान चीफ जस्टिस सिन्हा ने कहा कि न्यायिक क्षेत्र में उनकी योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता।

नागा जनजाति वर्ग से बने थे पहले जज
दिवंगत शिशाक का जन्म एक जनवरी 1941 को मणिपुर के उखरूल जिले के आदिवासी गांव में हुआ था। उन्होंने 1963 में स्नातक की पढ़ाई के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी की परीक्षा उत्तीण की थी, जिसके बाद 1967 से वकालत कर रहे थे। वे संवैधानिक एवं प्रशासनिक मामलों के जानकार थे और नागालैंड सरकार के वरिष्ठ शासकीय अधिवक्ता के साथ ही अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष भी रहे। इसके बाद उन्हें बार कोटे से 2 जनवरी 1989 को गुवाहाटी हाईकोर्ट कोहिमा बेंच में जज बनाया गया। फिर चार दिसंबर 2000 को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के पहले चीफ जस्टिस बने थे। इसके बाद 24 जनवरी 2002 को उनका तबादला हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट हो गया। शिशाक को देश के नागा जनजाति समुदाय के प्रथम न्यायाधीश और मुख्य न्यायाधीश होने का गौरव प्राप्त है। वे सौम्य, सरल तथा धैर्यवान व्यक्तित्व के थे और जमीन से जुड़े हुए थे।

हाईकोर्ट के समारोह में शिशाक ने कहा था, जो कहो वही करो
साल 2000 में डब्ल्यू ए शिशाक चीफ जस्टिस बनकर आए, तब उनके सम्मान में ओवेशन का आयोजन किया गया था। उस समय उन्होंने कहा था कि पूर्वोत्तर भारत में ओवेशन देने का ऐसा कोई समारोह और रिवाज नहीं है। मुझे छत्तीसगढ़ के लोगों से इतनी सद्भावना और स्वागत देखकर बहुत खुशी हो रही है, इसके लिए आभार व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। उन्होंने कहा था कि आप जो कहते हो वही करो, अगर हम अपने कहने के सिवाय दूसरा कुछ करते हैं, तो लोग हम पर भरोसा नहीं करेंगे और अगर भरोसा टूट गया तो मेरी राय में न्यायपालिका में कुछ नहीं रहेगा। क्योंकि, आखिरकार, न्यायपालिका पूरी तरह से लोगों के विश्वास की ठोस नींव पर बनी होती है। उनका यह संबोधन हाईकोर्ट के वेबसाइट पर आज भी उपलब्ध है।

विद्वता पर सवाल उठे तो कोई फर्क नहीं, पक्षपात का आरोप नहीं झेल सकता
इस समारोह में उन्होंने यह भी कहा था कि अगर, लोग मुझे कहे कि मैं विद्वान व्यक्ति नहीं हूं, तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन, कोई मुझ पर पक्षपात करने का आरोप लगाए तो मुझे बहुत बूरा लगेगा। मैं वकीलों से कहना चाहता हूं कि हम यहां उन लोगों को न्याय देने के लिए आए हैं जो बेगुनाह हैं। इसलिए हमें एक-दूसरे के प्रति निष्पक्ष रहना चाहिए।’ हमें स्पष्टवादी होना चाहिए और मनुष्य-मनुष्य के बीच कोई बाधा नहीं होनी चाहिए, जहां तक ​​न्यायपालिका का संबंध है, एक न्यायाधीश और एक विशेष व्यक्ति के बीच मित्रता खतरनाक है।

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