विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने अगस्त में ही 21 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। लगभग चार महीने पहले उम्मीदवार घोषित करने का अर्थ आसानी से समझा जा सकता है कि भाजपा की तैयारी पूर्व नियोजित है। एक दिन पहले ही केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक हुई जिसमें विचार विमर्श के बाद भाजपा ने नाम घोषित कर दिए। इस पूरे प्रोसेस में केंद्रीय गृह मंत्री की तैयारी की झलक दिखाई पड़ रही है। वे तीन बार यहां आकर जा चुके हैं। उन्होंने सीट वार कमजोरी और ताकत का आकलन करने के लिए एक फार्म प्रदेश भाजपा से भरवाया है।
इसी का असर है कि भाजपा ने टिकट जारी करने में राज्य की कांग्रेस सरकार से बाजी मार ली है। हालांकि राज्य सरकार ने भी विधायकों के परफार्मेंस को लेकर तीन से चार दौर का सर्वे पूरा करा लिया है। खुद सीएम 90 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा कर चुके हैं। फिर भी भाजपा ने चुनाव समिति का प्रमुख ओम माथुर को बनाया और सह प्रभारी के तौर पर केंद्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया को छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी देकर यह संदेश दे दिया कि छत्तीसगढ़ में भाजपा पूरी ताकत से चुनाव लड़ने जा रही है।
यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी मंत्रियों में से एक मंडाविया को यहां पर तैनात किया गया है। वे यहां से पांच दिन पहले ही गए हैं। मंडाविया ने यहां की बैठकों में यह साफ संदेश दिया है कि भाजपा प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को आगे करके ही चुनाव लड़ेगी।
लिहाजा चार महीने पहले टिकट देने का अर्थ यह है कि प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में पूरा समय मिल जाए और अपनी पूरी रणनीति बनाकर मुकाबला करे। दूसरी ओर पार्टी ने इस बात को नजरअंदाज किया है कि समय से पहले टिकट जारी करने से पार्टी के भीतर असंतोष उठ सकता है। जो लोग दावेदारी कर रहे थे, वे घोषित प्रत्याशी के खिलाफ लामबंदी कर सकते हैं।
विरोध के स्वर बुलंद कर प्रत्याशी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अब तक हर चुनाव इसी बात को ध्यान में रखते हुए दोनों प्रमुख दल चुनाव के कुछ दिन पहले ही टिकट का ऐलान करते थे। पर भाजपा ने इस बार उस एंगल पर या तो विचार नहीं किया या फिर इस बात से संतुष्ट होंगे कि जो भी विरोध करेगा, उसको मना लिया जाएगा। ऐसे नेताओं को मनाने के लिए या उन पर कार्रवाई करने के लिए पार्टी के पास पूरा समय होगा।