नक्सलियों के कई लीडर कोरोना के दौर में बीमार होकर मर चुके हैं। कइयों ने संगठन छोड़ दिया तो कुछ को पुलिस ने मार गिराया है। नक्सलियों के पास फौज कम हो चुकी है। खुद को कमजोर होता देख नक्सली लीडरों ने फरमान जारी किया है कि हर गांव के हर एक घर से एक लड़का या लड़की संगठन में भर्ती हो। लेकिन वहां के हालात देखकर जो हैं, वो भी नक्सलवाद का रास्ता छोड़ रहे हैं।
दावा है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों की कमर अब टूटने लगी है। अंदरूनी इलाकों में पुलिस की पैठ बढ़ रही है। जवान नक्सलियों को मार रहे हैं। इसके चलते उनमें घबराहट है। विकास, सुजाता जैसे बड़े हार्डकोर नक्सलियों के साथ काम कर चुके उनके साथियों का कहना है कि, युवा जाना नहीं चाह रहे। जो जा रहा है वह पांच से छह महीने में फिर से भागकर आ रहा है। यह सिलसिला पिछले डेढ़ से दो सालों से चल रहा है। संगठन कमजोर हो रहा है।
फोर्स अंदर घुस रही, एनकाउंटर का है भय
सरेंडर्ड नक्सलियों के मुताबिक, जिन इलाकों में पहले माओवादियों का जमावड़ा रहता था। वहां फोर्स का आना संभव नहीं था। अब ऐसे इलाकों में भी पुलिस फोर्स अंदर घुसने लगी है। एनकाउंटर का भय है। कोई मरना नहीं चाहता। फोर्स की पैठ बढ़ रही है, इसलिए नक्सली उन इलाकों को खाली कर रहे हैं। हालांकि, गांव वालों के बीच उनके सोर्स जरूर हैं।
संख्या कम हो रही लेकिन, ताकत बहुत है
नक्सलियों की संख्या कम जरूर हो रही है। लेकिन, उनके पास फाइटर्स अच्छे हैं। ताकत बहुत है। नक्सलियों की प्लाटून में पहले जहां 30 से 35 नक्सली हुआ करते थे अब संख्या सिमट कर 15 हो गई है। एक कंपनी में 100 की संख्या थी अब 70 नक्सली हैं। इसी तरह बटालियन में पहले 300 नक्सली थे लेकिन अब सिर्फ 150 लड़ाके ही हैं। इनकी LGS खत्म हो चुकी है। DVCM, ACM जैसे कैडर के नक्सली संगठन छोड़ रहे हैं।