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GGU के कन्वोकेशन में शामिल होने वाली मु्र्मू चौथीं राष्ट्रपति….ज्ञानी जेल सिंह थे पहले प्रेसिडेंट, भवन नहीं था; मैदान में हुआ था समारोह

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गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी के 40 साल के इतिहास में अब तक यहां केवल चार राष्ट्रपति ही दीक्षांत समारोह में शामिल हुए हैं। पहली बार 37 साल पहले 1986 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह दीक्षांत समारोह में शामिल हुए थे। उनके साथ ही यूनिवर्सिटी में राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, रामनाथ कोविंद और अब द्रौपदी मुर्मू दीक्षांत समारोह में शिरकत कर रही हैं। रतनपुर स्थित महामाया देवी का दर्शन करने वाली पहली राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हैं।

गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी की स्थापना साल 1983 में मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिवंगत अर्जुन सिंह ने की थी। इसके लिए बिलासपुर के छात्र नेताओं ने छात्र संघर्ष समिति बनाकर जनआंदोलन किया था, जिसका तत्कालीन मंत्री बीआर यादव सहित स्थानीय नेताओं ने समर्थन किया था। इसके बाद भी छात्र नेताओं का आंदोलन खत्म नहीं हुआ। उन्होंने यूनिवर्सिटी को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग को लेकर दिल्ली में धरना-प्रदर्शन किया।

लंबी लड़ाई के बाद गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी को साल 2009 में सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया। संयोगवश तब अर्जुन सिंह केंद्र में मानव संसाधान मंत्री थे। इसलिए शहरवासी इस यूनिवर्सिटी की स्थापना और इसे संवारने के लिए हमेशा उन्हें श्रेय देते रहे।

भवन नहीं था, मैदान में हुआ दीक्षांत समारोह
यूनिवर्सिटी की स्थापना के तीन साल तक भवन की व्यवस्था नहीं हो पाई थी। हालांकि, यूनिवर्सिटी का कामकाज किराए के भवन में बेहतर तरीके से चल रहा था। तब वर्ष 1986-87 में दीक्षांत समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह शामिल होने के लिए आए थे। दीक्षांत समारोह का आयोजन नूतन चौक स्थित गर्ल्स स्कूल परिसर में किया गया।

छत्तीसगढ़ की प्राचीन और ऐतिहासिक नगरी है रतनपुर
बिलासपुर से 25 किलोमीटर दूर कोरबा-अंबिकापुर मार्ग में स्थित रतनपुर प्राचीन और ऐतिहासिक नगरी है। रतनपुर छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी थी। तब छत्तीसगढ़ को दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाता था। बताते हैं कि प्राचीन काल में यहां घनघोर जंगल था। राजा रत्नदेव प्रथम शिकार करने गए थे। इस दौरान जंगल में थककर राजा एक पेड़ के नीचे विश्राम करने लगे और उनकी आंख लग गई। अचानक उनकी नींद खुली तो रात हो गई थी। उन्हें पेड़ के ऊपर अलौकिक रोशनी दिखी और राजा रत्नदेव को देवी के दर्शन हुए।

इसके बाद उन्होंने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया। रतनपुर के मां महामाया मंदिर का निर्माण राजा रत्नदेव प्रथम ने सन 1042 ईसवी में करवाया था। 18वीं शताब्दी तक रतनपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी रही। आदिशक्ति महामाया देवी को शक्तिपीठ की मान्यता है।

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