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डिजीज X से कैसे लड़ेंगे? कोविड पैनल चीफ ने बताया महामारी से निपटने का 4 प्वाइंट प्लान

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डिजीज एक्स (Disease X) के प्रकोप को रोकने के उद्देश्य से भारत अपने जीनोमिक निगरानी निकाय INSACOG के दायरे का विस्तार करने की योजना बना रहा है. निकाय के सह-अध्यक्ष ने News18 को बताया कि डिजीज एक्स को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने एक काल्पनिक हालात के रूप में बताया है, जहां एक नया रोग फैलाने वाला वायरस या बैक्टीरिया एक नई महामारी का कारण बनता है, जो पिछली महामारी की तुलना में अधिक गंभीर होती है. हालांकि तुरंत ऐसा कोई रोगजनक मौजूद नहीं है, मगर इस कार्रवाई का उद्देश्य भविष्य के खतरों के खिलाफ एक उचित कार्य योजना की संकल्पना तैयार करना है.

इसे सामान्य शब्दों में बताते हुए INSACOG के सह-अध्यक्ष डॉ. एनके अरोड़ा ने कहा कि फैलने से पहले तक कोविड-19 मानव जाति के लिए एक डिजीज एक्स था. उन्होंने कहा कि अब दुनिया को अज्ञात चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा, ताकि हम नई महामारी के प्रकोप के समय घबराएं नहीं. डॉ. अरोड़ा नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑफ इम्यूनाइजेशन (NTAGI) के प्रमुख भी हैं. उन्होंने News18 को बताया कि चार ऐसी रणनीतियां हैं, जिन्हें न केवल भारत में, बल्कि दुनिया के स्तर पर गंभीरता से लेने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि व्यापक निगरानी जारी रखना बहुत जरूरी है. इंडियन SARS-CoV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (INSACOG) के जरिये रोग फैलाने वाले वायरस या बैक्टीरिया की जीनोमिक निगरानी को बढ़ाने की जरूरत है.

चार-आयामी रणनीति
देश भर में SARS-CoV-2 वायरस के संपूर्ण जीनोम सीक्वेंसिंग को बढ़ाने के लिए INSACOG की स्थापना की गई. INSACOG जीनोम अनुक्रमण प्रयोगशालाओं (RGSLs) प्रयोगशालाओं का एक राष्ट्रीय बहु-एजेंसी संघ है. डिजीज एक्स को रोकने की दूसरी रणनीति संभावित रोगजनकों की एक सूची बनाना है. जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) अन्य विभागों के साथ पहले से ही सूची और रणनीतियों पर काम कर रहा है. भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) की टीम ने बैंगलोर बायोइनोवेशन सेंटर, जैव प्रौद्योगिकी विभाग और कर्नाटक सरकार के सहयोग से 32 संभावित रोगजनकों की पहचान की है. तीसरे जरूरत पड़ने पर भारत को कम से कम समय में टीके तैयार करने में सक्षम होना चाहिए, जैसा कि उसने कोविड-19 महामारी के प्रकोप के दौरान किया था.

7 महीने में वैक्सीन बनाने का लक्ष्य
भारत ने छह वैक्सीन प्लेटफॉर्म तैयार किए हैं, जिनमें एमआरएनए, निष्क्रिय, सबयूनिट और डीएनए शामिल हैं. विचार यह है कि टीका 200 से 250 दिनों के भीतर क्लिनिकल चरण में आने के लिए तैयार हो जाना चाहिए. अंत में चौथी रणनीति प्रभावी दवाओं, विशेष रूप से एंटीवायरल दवाओं को खोजने पर काम जारी रखना है. भारत दुनिया के लिए एक फार्मेसी है और दुनिया भर में शीर्ष फार्मा कंपनियों का घर है, इसलिए इसे एंटी-वायरल सहित प्रभावी दवाएं खोजने का लक्ष्य रखना चाहिए.

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