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पड़ोसी देशों से संबंध बेहतर बनाने में पीएम मोदी का जवाब नहीं

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देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी कहा करते थे कि ‘आप मित्र तो बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं’. इस हकीकत और इसके महत्व को समझते हुए पडोसी देशों से संबंधों को बेहतर से बेहतर बनाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी जवाब नहीं है. भूटान भले ही दुनिया के मानचित्र में एक छोटे से देश के तौर पर देखा जा सकता है, लेकिन भारत का पड़ोसी देश है और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस देश के लिए पीएम मोदी के मन में ख़ास महत्व है. भारत और भूटान के संबंध की गहराई इस बात से समझी जा सकती है कि आज देश में लोकसभा चुनाव की सरगरमियां तेज है और पीएम मोदी ही बीजेपी के लिए सबसे बड़े चहरे हैं. ऐसे में चुनाव की व्यस्तताओं के बावजूद पीएम मोदी ने भूटान के लिए समय निकला और भूटान का दौरा किया.

पीएम मोदी के भूटान दौरे की सफलता का अंदाजा आप इस बात से निकाल सकते हैं कि भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक ने पीएम मोदी को देश के सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ़ द ड्रुक ग्यालपो’ से नवाज़ा. नरेंद्र मोदी पहले विदेशी नेता हैं, जिन्हें भूटान ने इस सम्मान से नवाज़ा है. यही नहीं पीएम मोदी का दो दिवसीय भूटान दौरा ख़त्म होने के बाद वापसी के वक्त भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक और प्रधानमंत्री दोनों ही पीएम मोदी को विमान तक छोड़ने आए. शेरिंग तोबगे ने इस दौरान की तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट कीं और लिखा कि मोदी को भूटान आने से कोई रोक नहीं सका. उन्होंने लिखा, ‘हमसे मुलाक़ात करने आने के लिए मेरे भाई पीएम मोदी का धन्यवाद. न तो उनका व्यस्त कार्यक्रम और न ही ख़राब मौसम उन्हें वो वादा पूरा करने से रोक सका, जो उन्होंने हमसे किया था. शायद यही है जिसे मोदी की गारंटी कहते हैं.’

मोदी काल में नई उंचाई पर भारत-भूटान संबंध
एक महीने के भीतर पीएम मोदी और भूटान के पीएम की ये दूसरी मुलाकात है. लगभग दो सप्ताह पहले 14 मार्च को भूटान के पीएम ने अपने पांच दिन के दौरे के दौरान दिल्ली में पीएम मोदी से मुलाक़ात की थी. वहीं बीते साल नवंबर में भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक ने दिल्ली में पीएम मोदी से मुलाक़ात की थी.

अपने दौरे के दौरान पीएम मोदी ने यह आश्वासन दिया कि विकास की राह में भारत भूटान के साथ खड़ा रहेगा और अगले पांच सालों तक भूटान को 10 हज़ार करोड़ रुपये की आर्थिक मदद देगा.
भारत और भूटान के बीच अहम समझौते
पीएम मोदी के दौरे के वक्त भारत और भूटान के बीच कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं. ऊर्जा को लेकर दोनों मुल्कों के बीच अहम समझौता हुआ. भारत पेट्रोलियम उत्पाद और लूब्रिकेन्ट्स भूटान को सप्लाई करेगा. भारत का फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी भूटान के नियामक भूटान फूड एंड ड्रग अथॉरिटी को मान्यता देगा. दोनों मुल्क खेल और युवाओं के मामलों में साझेदारी करेंगे. अंतरिक्ष के मामलों में भूटान और भारत के बीच ज्वाइंट प्लान ऑफ़ एक्शन बना. दवा और इस तरह के उत्पादों की टेस्टिंग में दोनों सहयोग करेंगे. भूटान और भारत के बीच रेल मार्ग से संपर्क बनाने के बारे में दोनों काम करेंगे. मोदी ने ग्याल्तसुन जेत्सुन पेमा जच्चा-बच्चा अस्पताल का उद्घाटन किया. ये अस्पताल पूरी तरह भारत की मदद से बनाया गया है.

दोनों के बीच पनबिजली प्रोजेक्ट, हरित ऊर्जा और सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट मामलों में सहयोग पर सहमति बनी है. उम्मीद जताई जा रही है कि इससे भूटान के राजकोष को फायदा होगा. भूटान की सामाजिक-आर्थिक विकास में पनबिजली परियोजना की अहम जगह है. भूटान अपने यहां बिजली बनाकर भारत को बेचता है जिससे उसकी आमदनी होती है. ये उसके राजस्व का एक बड़ा हिस्सा है.

भूटान सरकार के साल 2022 के आंकड़ों के अनुसार भारत भूटान से 2,448 करोड़ रुपये की बिजली खरीदता है. माना जा रहा है कि भारत और भूटान सरकार के सहयोग से वांगदू फोदरांग में बना पुनातसांगछू- द्वितीय पनबिजली परियोजना इस साल पूरी हो जाएगी. एक अनुमान के अनुसार ये प्रोजेक्ट सालाना 4,357 यूनिट बिजली का उत्पादन कर सकता है.
भारत और भूटान
भूटान एक अनोखा देश है, तक़रीबन आठ लाख की आबादी वाला एक संवैधानिक राजतंत्र, जो अपनी बौद्ध परंपरा और पहचान को सर्वोच्च मानता है. भूटान के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध भारत की पड़ोस प्रथम नीति की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है. यह रिश्ता निरंतरता, आपसी विश्वास और सद्भावना पर आधारित है.

दो महत्वपूर्ण कारणों से भूटान भारत के लिए एक विशेष स्थान रखता है. पहला दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंध और दूसरा चीन से भूटान के सीमा के कारण भूटान का रणनीतिक महत्व. भारत भूटान का आसपी सम्बन्ध बहुत पुराना है, लेकिन 2014 के पीएम मोदी के कार्यकाल मे ये संबंध नई ऊंचाई हासिल की हैं.

अपनी भौगोलिक स्थिति और चीन के ठीक बगल होने की वजह से भूटान रणनीतिक रूप से भारत के लिए महत्वपूर्ण है. साल 1950 में चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जा और भूटान सीमा के पास चीनी सैनिकों की मौजूदगी ने भूटान को चिंतित कर दिया था. चीन के विस्तारवादी नीतियों की वजह भूटान ने भारत के साथ मजबूत संबंध बनाये, जो निरंतर और गहरा होता जा रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थिम्पू यात्रा ऐसे समय में हुई है, जब भूटान चीन से सीमा विवाद का शीघ्र समाधान चाह रहा है. भारत की नजर इस बातचीत पर है, क्योंकि इसका भारत के सुरक्षा हितों, खासकर डोकलाम ट्राई-जंक्शन पर, प्रभाव पड़ सकता है.
भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है. भारतीय विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, बिजली को छोड़कर, भारत का व्यापारिक व्यापार 2022-23 में 1,606 मिलियन डॉलर पहुंच गया, जो भूटान के कुल व्यापार का लगभग 73 प्रतिशत है. भारत 1,000 से अधिक भूटानी छात्रों को छात्रवृत्ति देता है. भूटानी तीर्थयात्री भारत के बौद्ध स्थलों की यात्रा करते हैं.

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