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इस बार लेट हो जाएगा मानसून, क्या होगा इसका असर

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भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी धुरी मानसून को कहा जाए तो गलत नहीं होगा. देश की अर्थव्यवस्था आज भी बड़े पैमाने पर कृषि क्षेत्र से जुड़ी है. भारत में कृषि लगभग पूरी तरह से मानसून पर निर्भर जिससे देश के अधिकांश कृषि भूमि की सिंचाई होती है. ऐसे में सबकी निगाहें मानसून के आगमन ही होती हैं. मौसम विभान ने हाल ही में ताजा अनुमान लगाया है कि इस साल मानसून अपनी सामान्य तारीख एक जून नहीं बल्कि उससे तीन दिन देरी से आएगा. ऐसे में सवाल यह है कि इसका क्या मतलब है और इसका देश पर कितना असर होगा या फिर तीन दिन का अंतर इतना बड़ा नहीं है और इसे नजरअंदाज किया जा सकता है.

मानसून पर निर्भरता
भारत में मानसून पर कृषि की बहुत ही अधिक निर्भरता है .खरीफ की फसल को पूरी तरह से मानसून के भरोसे है ही. अच्छी बारीश के कारण खेतों में बनी नमी रबी की फसलों पर और अंततः पूरी अर्थव्यवस्था पर असर डालती है. पूरे देश में खरीफ की फसल की बुआई मानसून के आगमन को देखते हुए की जाती है यह कार्य मानसून आने से कुछ ही दिन पहले कर लिया जाता है. ऐसे में मानसून की अनिश्चितता बुआई को एक जुआ बना देती है.

हर बार नहीं एक जून
मौसम विभाग ने हाल ही में कहा है कि केरल में इस बार मानसून एक जून नहीं बल्कि चार जून को आएगा. पिछले पांच सालों में वह एक जून पर नियमित रूप से नहीं आया है. बल्कि केवल एक ही बार एक जून को, 2018 और 2019 को दो दिन पहले, 2019 और 2021 को कुछ दिन बाद आया था.

देरी से ज्यादा सटीकता अहम
लेकिन तीन दिन की देरी कृषि पर कोई बहुत ज्यादा असर डालेगी यह मुश्किल है,उससे ज्यादा जरूरी है कि यह भविष्यवाणी ज्यादा सटीक हो. जबकि मौसम विभाग का अनुमान पिछले बार 2015 में ही थोड़ा गड़बड़ाया था. ऐसे में अगर किसान मौसम विभाग की मानें और उसी के अनुसार बुआई शुरू कर दें, तो इससे फायदा हो सकता है.

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