नारायणपुर से अबूझमाड़ होते हुए भास्कर टीम जंगल में 20 किमी अंदर कुंदला और वहां से बाईं ओर मुड़कर 15 किमी दूर कोहकामेटा पहुंची। यहां फोर्स का आखिरी कैंप है, यानी सरकार की पहुंच फिलहाल यहीं तक है। आगे कच्ची सड़क जैसी संरचना है और फिर बांस के जरिए बनाया गया नाका।
इस नाके के आगे धुरनक्सल प्रभावित ईरकभट्टी, कच्चापाल, मोहंदी, कस्तुरमेटा, तोयामेटा, आकाबेड़ा और कुतुल गांव हैं। अगर कुंदला से सोनपुर जाएं तो वहां से 4 किमी कच्चा रास्ता पार कर ढ़ोंडरीबेड़ा पहुंचेंगे। यहां भी फोर्स का आखिरी कैंप है। इन कैंपों के आगे जंगल में जाएं तो वहां सरकार नहीं बल्कि नक्सलियों का खौफ चलता है।
दोनों ही कैंप में भास्कर टीम को रोककर खतरे से अवगत कराया गया, लेकिन भास्कर टीम भीतर पहुंच गई। वहां खुलासा हुआ कि जंगल में एक अलग ही सरकार चल रही है, जिसे ग्रामीण जनताना सरकार कहते हैं। यह सरकार बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं करवाती, लेकिन जनअदालत लगाकर ग्रामीणों को बेवजह मौत की सजा देने में सबसे आगे है। नारायणपुर से (अबूझमाड़ के अंदर) 30 किमी अंदर ढ़ोंडरीबेड़ा कैंप के आगे तुमेरादी गांव है। इसी तरह, नारायणपुर से (अबूझमाड़ के अंदर) 28 किमी कोहकामेटा कैंप से कुतुल गांव है। यहां ग्राम पंचायत नहीं बल्कि 3-4 गांवों की व्यवस्था एक कमेटी चलाती है।
इनका विकास में कोई योगदान नहीं है। तुमेरादी गांव शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए लोकतांत्रिक सरकार की ओर से दी जाने वाली सुविधा पर निर्भर हैं। यहां न तो स्कूल है, न स्वास्थ्य केंद्र। मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है, बिजली और सड़क नहीं है। कुतुल में केवल स्वास्थ्य केंद्र है। अंदर के गांवों में रामकृष्ण मिशन, नारायणपुर के स्वास्थ्य केंद्र और आंगनबाड़ी संचालित हैं।
माओवादियों की जनताना सरकार के नाम पर चल रही कमेटियां शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा को नुकसान नहीं पहुंचातीं। लेकिन यहां कोई पक्का मकान नहीं बना सकता क्योंकि नक्सली इसके विरोधी हैं। हां, ये कमेटियां और इनके नक्सली आका एक काम जरूर करते हैं, वह है जनअदालत लगाने का।
भास्कर टीम को गांववालों ने बताया कि जब किसी व्यक्ति पर गंभीर आरोप लगता है, तब नक्सली उसकी सुनवाई के लिए जनअदालत लगाते हैं। कमांडर सुनवाई करते हैं और अगर आरोप साबित हुआ तो मौके पर ही सजा सुना दी जाती है, वह भी सीधे मौत की सजा। कुछ दिनों पहले एक ग्रामीण को सिर्फ इसलिए मार दिया क्योंकि वह एक पार्टी से जुड़ा था, बैठक में शामिल होने रायपुर आ गया था।
दरभा डिवीजन सबसे खतरनाक
बस्तर में सबसे ज्यादा सक्रिय माना जाने वाला दरभा डिवीजन… यहां नक्सलियों की 3 एरिया कमेटी कांगेरवेली, कटेकल्याण और मलांगेर हैं। इन तीनों डिवीजन में 405 नक्सली हैं, वह भी बाकायदा पुलिस रिकार्ड में नामजद। इस कमेटी का सचिव देवा ऊर्फ बारसा साईनाथ है। साईनाथ ने ही प्रेस रिलीज जारी कर अरनपुर घटना की जिम्मेदारी ली थी। दंतेवाड़ा विधायक भीमा मंडावी की हत्या दरभा डिवीजन के नक्सलियों ने की थी। झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं समेत 29 लोगों की हत्या जिन नक्सलियों ने की थी, उसे दरभा डिवीजन ही लीड कर रहा था।
एमएमसी जोन नया खतरा
“जहां भी फोर्स के कैंप हैं वहां वर्दीधारी नक्सल फ्रंट में नहीं होते। वहां संघम सदस्यों का मूवमेंट है। क्योंकि वे सामान्य ग्रामीण की तरह होते हैं, उन पर शक नहीं होता। नक्सली घटनाएं जरूर कम हो रही हैं, लेकिन मध्यप्रदेश-महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ को नक्सलियों ने एमएमसी जोन बना लिया है। यह बड़ा खतरा है।”