विश्वेश ठाकरे प्राचीन भारत की कांस्य प्रतिमाओं में श्रेष्ठ कही जाने वाली मंजुश्री को करीब 15 साल बाद महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय के सुरक्षित कक्ष, डबल लॉक से बाहर निकाला गया है। इसे विदेशों में होने वाले भारत महोत्सव में प्राचीन वैभव दिखाने ले जाते थे, फिर लॉकर में रख दिया जाता था।
अब सिरपुर में मिली इस प्रतिमा को 31 अगस्त को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को दिखाया जाएगा। इसके साथ ही मिली 7वीं-8वीं सदी में बनी 5-6 दूसरी कांस्य प्रतिमाओं को भी राष्ट्रपति को दिखाया जाएगा। राष्ट्रपति के दो दिन के प्रवास में महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय जाना भी तय है। उनके यहां आगमन को लेकर तैयारियां भी जोरों पर है।
पूरी इमारत का रंग-रोगन किया जा रहा है। इसे छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति की थीम पर सजाया जा रहा है। इसके साथ ही एक और तैयारी यहां चल रही है कि राष्ट्रपति को क्या-क्या दिखाया जाए। इसके लिए अधिकारी, विशेषज्ञों के साथ मिलकर पुराअवशेषों, प्राचीन मूर्तियों, सिक्कों की पूरी एक श्रृंखला बना रहे हैं। इसे एक सिलसिले में रखा जा रहा है, जिससे एक के बाद एक कालखंड की वस्तुएं व्यवस्थित तरीके से दिखाई जा सकें। संचालक, संस्कृति विवेक आचार्य कहते हैं कि हम राष्ट्रपति को प्राचीन छत्तीसगढ़ की समृद्धि, यहां का कला वैभव और विशेषता दिखाना चाहते हैं।
हम उन्हें यहां का प्रसिद्ध काष्ठ स्तंभ से लेकर, सिरपुर की कांस्यप्रतिमाएं, जिसमें मंजुश्री शामिल है, ताम्रपत्र, सिक्कों से लेकर कलचुरीकालीन चुनिंदा प्रतिमाएं दिखाएंगे। हमारा संग्रहालय विश्व के समृद्ध संग्रहालयों में से एक है और इसकी झलक वे देखेंगी।
कौन है मंजुश्री
पांचवीं शताब्दी के शहर सिरपुर की खुदाई में बौद्धकालीन सैकड़ों प्रतिमाएं मिली हैं। मंदिर मिले हैं, लेकिन फिर भी यहां जब कांस्य प्रतिमाओं से भरी बोरी मिली तो देश-विदेश के कलामर्मज्ञ चौंक गए। इन प्रतिमाओं की खूबसूरती, बारिकी, उनकी भाव-भंगिमा, वस्त्र, सभी कुछ 7 वीं-8 वीं सदी के लिहाज से चमत्कृत कर देने वाला था। इनमें से जिसे सबसे आर्टिस्टिक माना गया वो है मंजुश्री। यह बुद्ध होने से पहले बोधिसत्व का एक विग्रह है। यह शिक्षा का उजाला फैलाने वाले हैं। यह अशुभ शक्ति का नाश करने वाले हैं। यहां मिली मंजुश्री प्रतिमाएं कमल आसान पर विराजमान हैं।
हाथ में पुस्तक, कमल की डंडी, गले में रत्नों की माला है। बीच में हरे पन्ने का रंग प्रतिमा को बेहद खास बनाता है। एक प्रतिमा के सामने भक्त की छोटी मूर्ति है।
150 साल पुराना है महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय
देश का पहला नियमित संग्रहालय सन 1814 में कोलकाता में डाक्टर नथैनिएल वैलिश की देखरेख में स्थापित किया गया। इसके बाद मद्रास, कराची, बंबई, लाहौर जैसे और शहरों में संग्रहालय स्थापित हुए और इसी क्रम में 9 वें नंबर पर रायपुर में संग्रहालय स्थापित किया गया। इसकी जमीन राजनांदगांव के राजा महंत घासीदास ने दी। उस समय रायपुर में संग्रहालय स्थापित किया जाना यहां के पुरातात्विक महत्व को बताता है। क्योंकि जब संग्रहालय यहां बनाया गया, तब रायपुर की जनसंख्या महज 45 हजार 390 थी। जिन शहरों में संग्रहालय बनाए गये थे यह उनमें सबसे कम जनसंख्या वाला शहर था।
2 हजार साल का काष्ठस्तंभ 5वीं शताब्दी का ताम्रपत्र
रायपुर का यह संग्रहालय चमत्कृत करने वाली पुरासंपदा समेटे हुए है। यहां करीब 2 हजार साल पहले का काष्ठस्तंभ है। किरारी में मिले इस लकड़ी के खंभे पर उस समय के राज्य पदाधिकारियों के नाम हैं। सिरपुर में मिली 7वीं और 8वीं शताब्दी की कांस्य प्रतिमाओं की खूबसूरती ने हार्वर्ड विवि के प्रोफेसर प्रमोदचंद्र को चौंका दिया था। यहां 5वीं 6वीं शताब्दी का कुरूद में मिला ताम्रपत्र है, जो उस समय के लिहाज से आधुनिक था। 5वीं 6वीं सदी के ठप्पांकित सोने के सिक्के, विष्णु की दशावतार की प्रतिमा, 15वीं सदी के तीन बंदरों की मूर्ति जैसे 15 हजार प्राचीन वस्तुएं इस संग्रहालय को बेहद समृद्ध, अनोखा बनाती हैं।