आज हिंदी दिवस है। आजादी के 76 साल बाद भी हमारे देश में ज्यादातर काम अंग्रेजी में ही होता है। बैंक, बीमा कंपनी, मोबाइल कनेक्शन, शेयर मार्केट. फाइनेंस कंपनियों आदि में सभी तरह के फार्म अंग्रेजी में ही भरवाए जा रहे हैं। इसका हिंदी अनुवाद तक कंपनियों के पास नहीं है। रायपुर के विकास शर्मा एक बीमा कंपनी से बांड का हिंदी अनुवाद पाने के लिए पिछले 5 साल से लड़ाई लड़ रहे हैं।
कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में हिन्दी दिवस, हिन्दी सप्ताह और पखवाड़े का आयोजन विशेषकर बैंकों एवं अन्य वित्तीय संस्थानों में हो रहा है। पर इन्हीं संस्थानों में ही हिन्दी अपने सम्मान के लिए आज भी संघर्ष कर रही है। आम आदमी के लिए कई बैंकिंग और बीमा क्षेत्र में हिन्दी में कामकाज आज भी सरल और सुगम नहीं है। विकास शर्मा की लड़ाई इसका सच उजागर करती है।
रायपुर निवासी विकास शर्मा ने एक निजी बीमा कंपनी, जिसका संचालन एक बैंक के सहयोग से किया जा रहा है से विगत वर्ष टर्म बीमा पॉलिसी खरीदी जिसका पॉलिसी बांड पूरी तरह अंग्रेजी में था। बांड की प्रति हिन्दी में उपलब्ध कराने को लेकर उन्होंने सन 2018 में कंपनी के उपभोक्ता सेवा विभाग में पत्र लिखा। कई पत्रों के बाद सेवा विभाग ने दो टूक कह दिया कि वे हिन्दी में बांड उपलब्ध नहीं करा सकते।उपभोक्ता को लगा कंपनी के नहीं सुनने से क्या हुआ उन्होंने बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) में शिकायत की जहां से विस्तृत जानकारी मांगी गई।
बाद में उनके द्वारा बैंक को निर्देशित किया गया लेकिन बैंक ने फिर इनकार कर दिया। इसके बाद विकास ने बैंकिंग लोकपाल के पास अपनी बात रखी, जहां से पूरी जानकारी मांगी जाती रही, बांड पेपर की प्रतियां समेत सभी पत्राचार की कॉपी मंगाई गई। एक बार सुनवाई के लिए समय निर्धारित करने के बाद भी बुलाया नहीं गया। बाद में इस विषय को अपने दायरे से बाहर का बताकर बैंकिंग लोकपाल ने सुनवाई से इनकार कर दिया।
शर्मा ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और उनके अधीन प्रशासनिक एवं तकनीकी भाषा विभाग से शिकायत की। वहां से चार महीने तक कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई। प्रधानमंत्री कार्यालय से इस संबंध में शिकायत दर्ज की गई। लेकिन कुछ दिनों बाद वित्त मंत्रालय अधीन वित्तीय सेवाएं विभाग ने शिकायत को इस आधार पर नस्ती कर दिया कि यह मामला निजी क्षेत्र की बीमा कंपनी से जुड़ा है। बैंक ने अपना जवाब दे दिया है, साथ ही अन्य संबंधित एजेंसियों ने भी सूचित कर दिया है। कुल मिलाकर आज 5 साल बाद भी विकास को बांड की हिंदी प्रति नहीं मिली और ना ही किसी विभाग ने जिम्मेदारी ली।
राज्यों में राजभाषा को लेकर कोई बजट नहीं
राजभाषा को लेकर प्रदेश के बजट में कहीं कोई खर्च नजर नहीं आता। केंद्र सरकार ने नए बजट में गृह विभाग के अंतर्गत आने वाले राजभाषा के लिए 1.9 अरब रुपए का प्रावधान कराया है।