सरकार की जनहितैषी योजनाओं में से एक वन अधिकार पट्टा जंगल में पीढ़ी दर पीढ़ी दशकों से निवास रत परिवार आज भी वन अधिकार पट्टा की लड़ाई लड़ते चले आ रहे हैं वही देखा जाए तो अपात्र व्यक्तियों को पहले पात्र की श्रेणी में रखा जाता रहा है इसका कारण है प्रशासनिक तंत्र की लचर व्यवस्था की है जिसको लेकर समय-समय पर जंगल में बसे वनवासी आदिवासी और उनसे जुड़े जनप्रतिनिधियों के द्वारा शिकायतें करता रहा है जांच होता है कुछ लोगों के नाम भी सामने आते हैं जिसमें कुछ जनप्रतिनिधियों जंगल से जुड़े दलालों आदिवासियों के हित की बात कह कर उनके अहित करने वाले ठेकेदारों उससे ज्यादा वन अधिकार पट्टा से जुड़े कर एजेंसी उनसे जुड़े कुछ भ्रष्टाचार में लिप्ट अधिकारी कर्मचारी की भूमिका भी संदिग्ध है जिस पर शासन प्रशासन के द्वारा कोई कार्यवाही ना होना भी एक समस्या है जो भ्रष्टाचार रूपी पेड़ को बढ़ा रहा है इसी प्रकार का मामला है ग्राम पंचायत बिजरा कछार विधानसभा लोरमी का हैं जहां के बैगा आदिवासी एवं पिछड़ा वर्ग के लोगों के द्वारा कलेक्टर जनदर्शन में वन अधिकार पट्टा दिलाने की मांग किया गया उनका आरोप है शान द्वारा किया गया सर्वे गलत तरीका से होता है सर्वे करने वाले अधिकारी के द्वारा पक्षपात होता है उनके गांव में जो सर्वे हुआ है उनमें से 86 लोगों का नाम आया है इनमें से बहुतायत लोग अपात्र हैं जिसे पात्र बनाया गया है जबकि पात्र लोगों में से 20 लोगों के नाम को छोड़ दिया गया है जो आज कलेक्टर महोदय से अपनी फरियाद करने जनदर्शन में आए हुए हैं