विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की शुरुआत हो चुकी है. 75 दिनों तक मनाये जाने वाले इस पर्व की 3 अद्भुत रस्म निभाई जा चुकी है. वहीं नवरात्रि के ठीक 1 दिन पहले सबसे महत्वपूर्ण रस्म की अदायगी की जाएगी. ये परंपरा पिछले 600 सालों से चली आ रही है.
राजपरिवार पर्व को मनाने देवी से लेते है अनुमति
दरअसल बस्तर दशहरा में निभाए जाने वाले 12 अद्भुत रस्मों में से एक सबसे महत्वपूर्ण रस्म होता है काछनगादी रस्म. इस रस्म में राज्य के महापर्व को मनाने की अनुमति ली जाती है. और इसकी अनुमति इस साल 7 साल की कन्या पीहू देगी. नवरात्रि के ठीक एक दिन पहले निभाए जाने वाले इस रस्म में एक 7 साल की कन्या को काछनगुड़ी में जो देवी का मंदिर है. यहां परिसर में बने बेल के कांटों के झूले में कन्या को लेटाया जाता है. जिसके बाद कन्या इस दशहरा पर्व के अन्य रस्मों को मनाने की अनुमति देती है
600 सालों से निभाई जा रही परंपरा
ये परंपरा पिछले 600 सालों से चली आ रही है. परंपरा के तहत एक विशेष पनिका जनजाति की ही कुंवारी कन्या को बेल के कांटों से बने झूले में लेटाया जाता है. इस रस्म को निभाने से पहले करीब 9 दिनों तक 6 साल की कन्या उपवास रहती है. और काछनदेवी के मंदिर परिसर में कन्या को रखा जाता है. इस साल दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली पीहु श्रीवास्तव नवरात्रि के एक दिन पहले काछनगादी रस्म में देवी का अवतार लेकर दशहरा पर्व को मनाने की अनुमति देगी.
रस्मों को देखने दूर दराज से आते हैं लोग
कन्या पीहू के नानी भानू ने बताया कि. इस रस्म को निभाने के दौरान कन्या में साक्षात देवी आकर दशहरा पर्व को आरंभ कराने की अनुमति देती है. इधर इस रस्म को निभाने के लिए 7 साल की कन्या पीहू भी काफी खुश है. 14 अक्टूबर शनिवार शाम को इस रस्म की धूमधाम से अदायगी की जाएगी. खास बात यह है कि इस रस्म को देखने केवल बस्तर से ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों के साथ-साथ दूसरे राज्यों से भी पर्यटक और विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं.