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सीएम फेस पर क्यों फंसी कांग्रेस-बीजेपी: 20 साल में पहली बार 3 राज्यों में 21 दावेदार; चुनाव के बाद सरकार गिरने का खतरा!

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20 साल में पहली बार राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के रण में कांग्रेस और बीजेपी एक साथ बिना मुख्यमंत्री चेहरे के मैदान में उतर रही है. बीजेपी तीनों राज्यों में प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने की बात कह रही है, तो कांग्रेस सामूहिक नेतृत्व के सहारे मैदान में है. दोनों दलों की यह रणनीति चुनाव से पहले आंतरिक गुटबाजी से बचने के लिए है.

दोनों पार्टियों के इस फैसले की वजह से हिंदी हर्टलैंड के तीनों राज्यों में कम से कम मुख्यमंत्री पद के 21 मजबूत दावेदार बन गए हैं. सबसे ज्यादा राजस्थान में 8 दावेदार हैं, जिनमें 5 बीजेपी से और 3 कांग्रेस से शामिल हैं.

मध्य प्रदेश में 7 और छत्तीसगढ़ में सीएम पद के लिए 6 बड़े दावेदार हैं. दिलचस्प बात ये है कि तीन में से 2 राज्यों में अभी कांग्रेस और एक राज्य में बीजेपी की सरकार भी है.

सीएम के चेहरे को लेकर राजस्थान में जहां कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साध रही है, तो वहीं छत्तीसगढ़ में बीजेपी ओल्ड ग्रैंड पार्टी को निशाने पर ले रही है.

जानकारों का कहना है कि सीएम का चेहरा घोषित न करने का फैसला भले ही राजनीतिक पार्टियों के लिए फायदेमंद हो, लेकिन इससे जनता को नुकसान जरूर हो सकता है.

2018 के चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी, जिसके बाद पार्टी ने भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया था. बघेल पूरे 5 साल तक मुख्यमंत्री रहे. हालांकि, चुनाव से पहले उनके साथ पार्टी ने एक डिप्टी भी बना दिया.

पार्टी ने चुनाव में मुख्यमंत्री उम्मीदवार के नाम की भी घोषणा नहीं की है. इसके बाद पार्टी के भीतर 3 नेताओं की दावेदारी और मजबूत हो गई है. भूपेश बघेल के साथ-साथ कांग्रेस में टीएस सिंहदेव और चरणदास महंथ मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं.

सिंहदेव समर्थकों का कहना है कि उन्हें हाईकमान ने 2018 में भी मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था, लेकिन यह पूरा नहीं हो सका.

2003 में कांग्रेस की ओर से अजित जोगी मुख्यमंत्री के चेहरा थे. 2008 में भी कांग्रेस उन्हीं के सहारे चुनावी मैदान में उतरी थी. 2013 के चुनाव से पहले कांग्रेस के बड़े नेता झीरम घाटी में शहीद हो गए, जिस वजह से पार्टी ने नामों की घोषणा नहीं की. पार्टी करीबी मुकाबले में बीजेपी से चुनाव भी हार गई.

2018 में कांग्रेस सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ी और जीत दर्ज की. बीजेपी की बात की जाए, तो 2003 के बाद से 2018 तक पार्टी में रमन सिंह ही चेहरा रहे हैं. हालांकि, इस बार उनके नाम की घोषणा पार्टी ने नहीं की है.

रमन सिंह के नाम की घोषणा नहीं होने से बीजेपी में कई नेताओं की दावेदारी मजबूत हो गई है. इनमें अरुण साव, सरोज पांडे का नाम प्रमुख हैं. हालांकि, कांग्रेस रमन सिंह पर ही ज्यादा निशाना साध रही है.

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