अपनी अनोखा परंपरा और अनोखी रस्मों को समेटे हुए विश्व प्रसिद्ध बस्तर (Bastar) दशहरा ( Dussehra) पर्व की एक और महत्वपूर्ण रस्म अदा की गई, जिसे कुटुंब जात्रा रस्म कहा जाता है. इस रस्म के तहत दशहरा पर्व में संभाग भर से हजारों की संख्या में शामिल हुए देवी देवताओं के छत्र, डोली और सिम्बोल को बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव (Kamal Chand Bhanjdev) ने पूजा अर्चना कर ससम्मान विदा किया.
बस्तर राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने बताया कि अबूझमाड़ के देवी देवता के साथ संभाग के हर गांव से इस बार पर्व में देवी-देवता की ड़ोली और छत्र शामिल हुए. कुटुंब जात्रा रस्म के दौरान उन्हें वापस ससम्मान विदा किया गया. वहीं देवी-देवताओं के विदाई समारोह में बलि प्रथा की भी परंपरा है. इस दौरान बकरा, मुर्गा, कबूतर के साथ बत्तख की भी बलि देकर इस रस्म को अदा किया गया.
वर्षों पुरानी परंपरा आज भी कायम है
खास बात यह है कि केवल बस्तर दशहरा पर्व में ही इतनी बड़ी संख्या में एक-एक गांव के देवी देवताओं के छत्र डोली इस दशहरा पर्व में पहुंचती है. इस दौरान रस्म में इन देवी-देवताओं के छत्र और डोली को शामिल किया जाता है. वहीं पर्व के समाप्ति होने के बाद इनका ससम्मान विदाई करने की भी परंपरा है. रियासत काल से ही राजा-महाराजा गांव-गांव से पहुंचने वाले देवी-देवताओं के छत्र और डोली को और उनके साथ पहुंचने वाले पुजारी को ससम्मान विदा किया करते थे. फिलहाल यहीं परंपरा आज भी कायम है.
बस्तर में निभाई जाती है बलि प्रथा
बस्तर में 75 दिनों तक मनाये जाने वाले दशहरा पर्व की एक और महत्वपूर्ण कुंटुब जात्रा की रस्म अदा की गई. इस रस्म में बस्तर राजपरिवार और दशहरा समिति के अगुवाई में बस्तर संभाग के ग्रामीण अंचलों से पर्व में शामिल होने पंहुचे सभी ग्राम के देवी-देवताओं को ससम्मान विदाई दी गई. शहर के गंगामुण्डा वार्ड में मौजूद देवगुड़ी में श्रध्दालुओं ने अपनी-अपनी मन्नतें पूरी होने पर बकरा, कबूतर, मुर्गा और बतख की बलि चढाई. इसके साथ ही दशहरा समिति की ओर से सभी देवताओं के पुजारियों को ससम्मान विदा किया गया. बस्तर राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने बताया कि चुनाव को देखते हुए आचार संहिता के बावजूद दशहरा पर्व की 600 साल पुरानी परंपराओं को विधि विधान से संपन्न कराया गया और बकायदा प्रशासन ने भी इस पर्व के तरफ से आचार संहिता का उल्लंघन ना हो इसका खास ध्यान रखा.
रूसूम देकर देवी देवताओं को किया विदा
परंपरानुसार दशहरा पर्व में शामिल होने संभाग के सभी ग्राम के देवी देवताओं को न्यौता दिया जाता है. जिसके बाद पर्व की समाप्ति पर कुंटुब जात्रा की रस्म अदायगी की जाती है. इस दौरान देवी-देवताओं के छत्र और डोली लेकर पंहुचे पुजारियों को बस्तर राजकुमार कमलचंद भंजदेव और दशहरा समिति द्वारा रूसूम भी दी जाती है. जिसमें कपड़ा, पैसे और मिठाईयां होती है. बस्तर में रियासतकाल से चली आ रही यह पंरपरा आज भी बखूबी निभाई जाती है