Home रायपुर टाई डाई साड़ी बुनाई से संजय हुए खुशहाल

टाई डाई साड़ी बुनाई से संजय हुए खुशहाल

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रायपुर (वीएनएस)। हाथकरघा से जुड़े बुनकर अपनी जिंदगी के ताने-बाने तो बुन ही रहे हैं। इसी तारतम्य में टाई डाई साड़ियों की बुनाई करके संजय की जिंदगी भी खुशहाल हो गई है। यह कहानी महासमुंद जिले के सरायपाली तहसील के ग्राम सिंघोड़ा निवासी संजय मेहेर की है। जो बचपन से ही अपने परंपरागत व्यवसाय बुनाई कार्य कर रहे हैं। उनके द्वारा तैयार की गई मयूरी साड़ी की बाजार में बड़ी अच्छी मांग है। इस साड़ी की विशेषता यह है कि साड़ी के किनारे में डाबी डिजाईन, पल्लू में फूल और साड़ी में जीव-जंतुओं की आकृति को डिजाईन देकर दो दिन में साड़ी तैयार की जाती है। इसकी बुनाई से उन्हें 1200 रूपए की बुनाई मजदूरी मिलती है।
उन्होंने बताया कि उनके पिताजी और दादा जी के समय से दो साड़ियों की बुनाई कर उसे गांव-गांव में जाकर बेचा करते थे। इससे उन्हें 500 से 1000 तक की आय होती थी, जिससे उनके पूरे परिवार का बड़ी मुश्किल से खर्च चलता था। संजय ने बताया कि आज वे विभिन्न प्रकार की साड़ियों की डिजाईन जैसे- पेपर, महाली, बाबता, डिजाईन की टाई डाई साड़ियों की बुनाई कर रहे हैं। इन साड़ियों की बुनाई से प्रति साड़ी ढाई से तीन हजार रूपए तक की बुनाई मजदूरी मिलती है, जिसके कारण आज वे अपने एक पुत्र और दो पुत्री की पढ़ाई-लिखाई और अपने परिवार का गुजारा बुनाई कार्य से हाने वाले आमदनी से बड़ी आसानी से कर रहे हैं। उनके पास आज 4 एकड़ कृषि योग्य भूमि, मोटर सायकल और उनका खुद का पक्का मकान है, यह सब बुनाई कार्य से हुई आमदनी से ही संभव हुआ है। संजय मेहेर ने बुनकर समिति में 2010-11 से सदस्यता ग्रहण कर विभिन्न डिजाइनों की साड़ियों की बुनाई कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे विगत 40 वर्षों से उड़िया टाई डाई साड़ी का बुनाई कार्य कर रहे है। आज उनके द्वारा 1000 से 10,000 रूपए तक की टाई डाई सम्बलपुरी साड़ी तैयार की जाती है। उन्होंने बताया कि ग्रामोद्योग विभाग के वरिष्ट अधिकारियों द्वारा उन्हें छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती जिलों में ओडिसा प्रांत से संबंधित पैटर्न के वस्त्र का प्रचलन है, इन पैटर्न की साड़ियों के उत्पादन करने के निर्देश प्राप्त हुए थे। जिसके तहत विरेन्द्र बहादुर बुनकर सहकारी समिति मर्यादित सलडीह के बुनकर सदस्यों द्वारा कादम्बनी साड़ी तैयार कर प्रस्तुत किया गया। जिसे बिलासा हैण्डलूम में बिक्री हो रही है। इससे बुनकरों को उनकी आय में आर्थिक बढ़ोत्तरी हो रही है।

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