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बस्तर पर कभी निर्दलियों का था राज, दो दशक तक भाजपा का रहा कब्जा

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आदिवासी बाहुल बस्तर लोकसभा सीट पर भाजपा-कांग्रेस ने अभी से प्रचार में पूरी ताकत झोक दी है. आज नामांकन के बहाने दोनों दलों ने शक्ति प्रदर्शन किया. कांग्रेस प्रत्याशी विधायक कवासी लखमा और भाजपा प्रत्याशी महेश कश्यप ने वरिष्ठ नेताओं के साथ नामांकन दाखिल किया. इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवारों का वर्चस्व हुआ करता था. आजादी के बाद वर्ष 1952 से 1971 तक यहां निर्दलीय जीतकर आते रहे. इसके बाद भाजपा ने कब्जा जमाया. 1998 से 2014 तक लगातार भाजपा प्रत्याशी ने जीत दर्ज की.

बता दें कि बस्तर लोकसभा अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित सीट है. यह सीट 1952 में पहली बार अस्तित्व में आई थी. यहां से मौजूदा सासंद कांग्रेस के दीपक बैज हैं. 2019 में दीपक ने बीजेपी के बैदूराम कश्यप को हराया था.

निर्दलीय उम्मीदवार के जीतने की परिपाटी वर्ष 1952 के पहले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार मुचाकी कोसा को 83.05 प्रतिशत वोट के रिकार्ड जीत के साथ जुड़ा है. इस रिकॉर्ड को आज तक कोई उम्मीदवार तोड़ नहीं पाया है. इसके बाद अब तक लोकसभा चुनाव के इतिहास में अधिकतम वोट कांग्रेस के मनकूराम सोढ़ी के नाम पर है, जिन्हें 1984 के चुनाव में 54.66 प्रतिशत वोट मिले थे. आदिवासी बाहुल्य बस्तर लोकसभा सीट में निर्दलीय उम्मीदवारों के वर्चस्व को वर्ष 1980 में कांग्रेस ने तोड़ा, लेकिन यह मात्र दो चुनावों तक ही सीमित रहा. 1991 में फिर निर्दलीय उम्मीदवार महेंद्र कर्मा ने कांग्रेस को हराकर जीत दर्ज की थी. इसके बाद 20 वर्षों तक बस्तर लोकसभा सीट पर कमल खिलते रहे, लेकिन वर्ष 2019 के चुनाव में दीपक बैज ने भाजपा के बैदूराम कश्यप को हराया.

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