छत्तीसगढ़ सरकार इंग्लैंड और यूरोपियन यूनियन के साथ मिलकर भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार ढूंढ रही है. उनके इस अवतार के मिलने से छत्तीसगढ़ में जैव-विविधता को संरक्षित करने में मदद मिलेगी. दरअसल, जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए वन विभाग ने अनूठी पहल की है. कोरबा के साथ-साथ कोरिया सहित अन्य जिलों में गोल्डन महाशीर मछली की तलाश की जा रही है. इसे संरक्षित करने के लिए वन विभाग यूरोपीय यूनियन और ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है. माना जाता है कि भगवान विष्णु ने इसी मछली के रूप में पहला मत्स्य अवतार लिया था.
इसके तहत इंग्लैंड से मार्क इवरर्ड के नेतृत्व में वैज्ञानिकों का एक दल हाल ही में कोरबा जिले के कटघोरा पहुंचा. यहां कटघोरा डीएफओ के साथ चर्चा के बाद वैज्ञानिकों का दल हसदेव और इसकी सहायक नदियों में गोल्डन महाशीर मछली की तलाश करने निकल पड़ा. दल ने बांगो क्षेत्र में हसदेव नदी में वर्षों से मछली पकड़ रहे मछुआरों से संपर्क किया. इसके बाद सब मोटर बोट पर सवार होकर नदी में उतर गए. दिन भर चली खोजबीन के बाद भी यह मछली वैज्ञानिकों के दल को नहीं मिली. वैज्ञानिकों ने इस मछली की पहचान क्षेत्र के मछुआरों को बताई. इसके बाद टीम आगे निकल गई. विशेषज्ञों ने बांगों के डुबान क्षेत्र के अलावा हसदेव की सहायक नदियों में भी गोल्डन महाशीर की खोजबीन की.
पौराणिक ग्रंथों में गोल्डन महाशीर का जिक्र
बता दें, पौराणिग ग्रंथों में गोल्डेन महाशीर मछली का जिक्र है. मान्यता है कि भगवान विष्णु ने पहला अवतार गोल्डन महाशीर के रूप में ही लिया था. यह मछली गायब होने की कगार पर है. कटघोरा डीएफओ कुमार निशांत ने बताया कि गोल्डन महाशीर को भारतीय नदियों का शेर कहा जाता है. यह मछली अधिकतम 50 किलो वजन तक की होती है. इसे इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने विलुप्तप्राय जलीय जंतु की सूची में रखा है. मार्क इवरर्ड दुनिया के जाने-माने पर्यावरणविद हैं. उन्होंने गोल्डन महाशीर मछली के बारे में भारतीय किताबों में पढ़ा था. इसमें इस मछली के हसदेव नदी में होने की जानकारी दी गई थी.